Inspired by true events …..पर वो अंकित, वो बबलू, वो दीदी, वो बहन, वो हम, वो मैं, वो अहेम….वो सब यहींहैं…हम सब के आस पास है….शायद हम सब में भी…atleast in some form or manner …..
दीदी ….दीदी मैं कुछ अपना सुनाऊँ। (Bablu’s question woke me from my day dreaming) …
तुम भी लिखते हो ? हमने अचंभित स्वर में पूछा (जैसे रचनात्मक विचार भी economic social status देख के आतेहैं)
लिखना नहीं आता मुझे - स्कूल नहीं जाता ना, पर सुना सकता हूँ।….पर पहले आप अपना ऑर्डर दे दीजिए वरना सेठसोचेगा मैं फिर मसखरी कर रहा हूँ
(बाद में सोचती हूँ तो खुद पे आश्चर्य होता है की while I stunned with the fact that Bablu could have creative thoughts but the fact that a kid was taking food order in a dhaba didn’t even pinch a little bit) bloody hypocrites that we humans are……
हाँ उसका नाम बबलू है…..इतनी बात कर रहा था की नाम पूछने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी….
दो कॉफ़ी और दो वड़ा पाव…..तुम अदरक वाली चाई लोगे? पर तुम्हें तो…? एक साल गुज़र गया है पर वो अब भी साथहै - है ना ….
तुम्हें भी तो उसकी याद ही इस ढाबे में लेके आइ है…नहीं?
अच्छा बबलू, एक कॉफ़ी, एक चाई और वड़ा पाव ले आओ।
अंकित, memorial पे क्या करेंगे?
मैं क्या बोलूँ….माँ बाबा क्या चाहते हैं?
तुम लोग एक दूसरे से कब तक बात नहीं करोगे….माँ बाबा को कैसे समझाऊँ जब तुम खुद ही खुद को दोषी मानते हो
But only if I had taken a stand….she probably would …..
It was bloody her decision as well….
दीदी - आपकी कॉफ़ी aur चाई….अपने आतिफ़ असलम का गाना सुना है दीदी…
"आओ लेके चलूँ तुमको मैं
बचपन की उन गलियों में
जहां रंग हैं, यार है, फ़ुरसत है
शायद कहीं इसमें तुमको तुम मिलो
चलो कहूँ तुमसे मैं मेरी कहानी….”
पर बबलू तुम तो अपना कुछ सुनने जा रहे थे ना?
हाँ दीदी - तो कुछ यूँ है -
"मँझधार में फँसे लोगों की मदद करते नहीं किनारे की ये लोग ।
ग़र मदद करने की ठानते भी हैं कुछ लोग ,
उनको भी टोक के रोक लेते हैं बाक़ी के ये लोग ॥
मँझधार में फँसे लोगों के लिए चाहे कुछ कर पाएँ ना ये लोग,
तोहमत ज़रूर लगा देते हैं उनपे ये लोग।
कोशिश कर क़िस्मत से ग़र पहुँच जाएँ किनारे पे ये लोग,
वापस मँझधार में उन्हें पहुँचने का ज़िम्मा उठा लेते हैं ये लोग॥"
….I was awestuck for couple of minutes on the thought process, understanding and creativity of this kid…had Priya been here (like before), she would have all the right words to appreciate this kid’s creativity….she (my sister) complemented me in so many ways…..like she complemented Ankit ….she was that missing part of our lives and both of us are sitting incomplete today…
दीदी heavy था , सबकी समझ में नहीं आता…..he ran to the next table to take the order (smiling) while saying this…..
….and both Ankit and I sipped our drinks while being lost in our day dream.
——- story written by Soumya (2021)
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