आज खिड़की की जाली से
छनती मद्धम धूप में,
मैंने मुड़कर पीछे देखा।
यादों ने फिर दस्तक दी।
इस छनती मद्धम धूप में ,
कुछ धुँध भरी उस राह पे,
मैंने मुड़कर पीछे देखा
धुँध को फिर कुछ हटते देखा।
जब मैंने मुड़कर पीछे देखा,
कुछ रंग दिखे -
कभी बचपन के, कभी यौवन के।
हसी, ठठोलीं, झिलमिल धूप,
सभी दिखे उन यादों में ।
जब मैंने मुड़कर पीछे देखा,
कुछ काली सियाह रात भी थीं
और यादों के इस मयेखाने में
कुछ स्लेटी रंग की यादें भी थीं।
ज़िंदगी के हर दोराहे पे
मैंने मुड़कर पीछे देखा
अतीत के उन पन्नों से
कुछ सीखा और कुछ बस याद किया
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